"सुपंथ पर चलें"(लेख)
सुपंथ पर चलें
अकण्टक जीवन बनाने के लिये,हम सबको अपनी सहन शक्ति और समझ शक्ति को मजबूत करना चाहिये।इसके लिये हमें अपनी मन इंद्रियों को नियंत्रित करना होगा।द्वेष,ईर्ष्या,स्वार्थ,लोभ का त्याग करना होगा।सोलह कलाओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिये ,आचार्य गुरू के सानिध्य में साधना करना होगा।तभी हम सब अज्ञान रूपी तम को मिटा सकेंगे,परस्पर प्रेम के दीप घर,घर,द्वार,द्वार,मार्ग में जला सकेंगे,लोक मंगल के गीत गा सकेंगे,दूसरों के दुख बाँट सकेंगे,प्रकृति की मोहक सुंदरता की कथाएँ,कहानियाँ, नयी पीढ़ी को सुना सकेंगे।
आइये, घ्रणा,हिंसा को अतिदूर कर,अपनी मधुर वाणी से,सद्व्यवहार से,पारदर्शी चरित्र से,घर,परिवार,समाज को नया रूप दें।
मानव जीवन में रूठना और मनाना एक क्रम है।कभी बच्चे रूठते हैं,भाई,कभी बहिन,कभी माता पिता,कभी रिश्तेदार और कभी मित्र ।
जिस घर में,परिवार में,समाज में,देश में रूठने और मनाने का दौर चलता रहता है,वहाँ परस्पर प्रेम,रिश्ता,विश्वास बहुत प्रगाढ़ होता है।वहाँ बाहरी की मध्यस्ता स्थान नहीं पाती।न उन्हें रूठने मनाने की बात पता चल पाती है।
यह अनूठे संस्कार,सभ्यता,शिष्टाचार,परम्परा,केवल भारतीयों के व्यवहार में है।जहाँ इसका स्थान खत्म है ,वहीं द्वेष,ईर्ष्या,भेद भाव,हिंसा,अहम,अलगाव बलवान हो जाता है,वही एक आँगन,एक घर,एक परिवार,एक समाज,एक देश का टुकड़े करा देता है।नफरत की दीवारें खड़ी करा देता है,जानी दुश्मन बन देता है।सारे ताल मेल बिगाड़ देता है।फिर लाख कोशिश करने पर अपने रूठे मानते नहीं।
आइये,हम सब अपने अहम को त्याग कर अपने रूठे स्वजनों को,सेवकों को मनाने का क्रम जारी रखें और जरूरत पड़ने पर रूठे भी।रूठने मनाने की श्रेणी में दामाद,फूफा,मामा, दादी बाबा,बच्चे,अभिन्न मित्र आते हैं।बच्चों को,इसी सुसभ्यता,स्नेह,अपनेपन में ढालना है।ऐसा करने से कोई बुजुर्ग वृद्धाश्रम नहीं जाएगा।
आने वाले कल में,हिंसा,स्वार्थ,द्वेष,ईर्ष्या,शत्रुता का स्थान नहीं रह जायेगा।
जरूरत है ऐसा माहौल बनाने के लिये,अमानवीय सोंच रखने वालों को,हिंसकों को,मूर्खों को,राष्ट्र द्रोहियों को,दुष्कर्मियों को,हमेशा दूर रखें।ऐसों से अपने नौनिहालों को अति दूर रखें।उन्हें अच्छे बुरे व्यक्ति की पहचान बताएं।यही वरिष्ठ जनों का कार्य है।उसको बखूबी करें।
nice....
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