"बाल श्रम"(कविता)

ज़िंदगी ने  पढाई  की उम्र में,

  मजदूरी करवाई  दो वक्त की

रोटी ने सारी खुशियाँ भुलाई,

  खेल कूद  की उम्र में ज़िंदगी।

ने चाय की  दुकान ढाबों पर, 

  मेहनत करवाई, ईंटे उठाकर 

छोटी  उम्र, में  हमने  अपनी।

  पीठ   तुड़वाई  जम्मेदारी ने,

हमारी  जरूरतें  भुलाई   दो।

  वक़्त की रोटी ने  कुछ  ऐसे,

हमारी तकदीर,  बनाई  पूरी।

  ज़िंदगी  श्रम मजदूरी  करते, 

गुजरी   कदम    कदम   पर,

  मिली चुनौती और कठिनाई।

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