"लाचार"(कविता)

नियत जन्म से गुनहगार नही होते।।

हुस्न जलवे पे यु बेकरार नही होते।।

इंसानियत ही मेरी पहचान है ।।

वरना कब के दुनिया जला चुके होते।।


सब मेरे अपने है किसको मैं धोखा दूँ।

अपने ही पीठ पर कैसे खंजर मार दूँ।।

मेरे आँखों मे जो मन्जर कैसे दिखा दूँ।

मेरी तन्हाइयां तुम्हे कैसे उपहार दे दूं।।


कर गुजरने का हौसला बहुत है ।।

मगर यादे मेरी तबियत से बेगुनाह है।।

मुजरिम नही थोड़े वक़्त से लाचार है।

हवा का रुख बदलेगा................।।

अभी थोड़े बीमार है...............।।

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