"हर शहर कब्रिस्तान"(कविता)
दिल का गम, बन दरियाँ।
आँखों से बह जाता है।।
जब उम्मीद न हो जिससे।
वो ही फिर दिल तोड़ जाता है।।
ये कौन सा तबाही का मन्जर है।
हर शहर कब्रिस्तान नजर आता है।।
लोग मातम में गैरों के भी जाते थे।
आज अपना भी छोड़ चला जाता है।।
इंसानियत जैसे आँखों से मर चुकी है।
जिंदा हो या मुर्दा,फर्क कहाँ अब नजर आता है।।
कोई गिला,शिकवा,शिकायत,किससे करे।
कोई पास में बैठा कहाँ नजर आता है।।
कुछ तो करो जतन कोई ऐसा मौला।
हर शख्स अब किरदार में नजर आता है।।
उन फ़रिस्तो को फिर से आना हो गा ।
हाथों में लिये मशाल फिर से जलाना हो गा।।
Written by कवि महराज शैलेश
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