"सत्ता"(कविता)

भूखी नगरी की माया ,

गांवों तक उसकी छाया ।

अंधेरा का नाता पाया ,

जुल्मी मसीहा क्या आया ?

आंसू जनता ने बहाया ,

सड़कों पे भी चिल्लाया ।

लम्हा-लम्हा तो हुआ जायां ,

क्यूं उसने है सताया ?

जहर भी है पिलाया ,

प्रियतमा ! ख्वाब़ भी चरमराया ।

इश्क की बातें दायां-बायां ,

झूठे दावे की छत्रछाया ।

छलिया को कितना भाया ,

क्यूं उसने आग लगाया ?

काया की कीमतें लगाया ,

कालकोठरी में किसे लाया ?

गीदरों से हुआं-हुआं कराया ,

कुत्ता भी है शरमाया ।

किसने किसको है फंसाया ,

क्या समझाया और गाया ?

सवालों पे सत्ता तमतमाया ,

स़च़ को क्या भूलाया ?

निःशब्दता भी उंगली उठाया ,

नदी-समंदर भी क्यूं लहराया ?

साहिलों पे मांझी कतराया ,

मछलियां देखते कश्तियां  डुबाया ।

लाशों पे क्या गुनगुनाया ,

आईना क्या है मुस्काया ?

फूलों तक भी मुरझाया ,

भौरा क्यूं महफिल जमाया ?

माली को हैं ठुकराया ,

चिड़ियों  की पांखें कतरवाया ।

संवादें मिडिया पे छितराया ,

तौब़ा -तौब़ा करके दिल बहलाया ।

बेपर्दा  हो हमें नचाया ,

सूरज को आखिर गिराया ।

रातें ,चंदा ,नवाब़ , अपना-पराया -

कहानियों में है समाया ।

कविता का शबाब़ गड़बड़ाया ,

अम्बर में बादल छाया ।

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

"जिस्म़"(कविता)

"बेटियाँ"(कविता)

"उसकी मुस्कान" (कविता)

"बुलबुला"(कविता)

"वो रात" (कविता)