"आशिक"(कविता)
इश्क करने वाले अब कहाॅं मिलते हैं
चूम लु,चौखट उस दर की,जहाॅं मिलते हैं
इश्क में रोज होती है यहां अदला-बदली
अब तो ऐसे आशिक हर जहाॅं मिलते हैं
इस जहां में नहीं मिलेंगे इश्क करने वाले
सच्चे आशिक अब खुदा के वहाॅं मिलते हैं
क्या अब नहीं है इश्क में जान देने वाले
कभी-कभी, कहीं-कहीं, जी हाॅं मिलते हैं
इतनी चकाचौंध मगर मन की शांति कहां
ढूंढो यहां तो सारे इंसान तन्हाॅं मिलते हैं
बुरे समय में भाग जाते हैं जो आपसे दूर
ऐसे लोग रोज रोज खामखाॅंह मिलते हैं
Written by कमल श्रीमाली(एडवोकेट)
superb....
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