"दुःख: मानव जीवन का अभिन्न भाग"(लेख)

 दुःख: मानव जीवन का अभिन्न भाग

प्रायः हम सभी के सम्पूर्ण  जीवन का सफर ऐसे मार्ग से गुजरता है जिसके प्रत्येक कण और प्रत्येक क्षण की घटनायें अप्रत्याशित और रहस्य से युक्त होती है,वास्तव में ये सारा जगत दो विपरीत शब्दों से युक्त है जैसे सुख-दुख; लाभ-हानि;यश- अपयश,चोटी-घाटी,प्रकाश-अंधकार इत्यादि । अतः चाहे अनचाहे रूप से ये सभी हर किसी के जीवन का अंग अवश्य बनते है।रही बात,इनके महत्व की, सो दोनों पक्षों का स्थिति समान है, यह ठीक वैसे ही है जैसे दिन का महत्व रात पर और रात का महत्व दिन पर आधारित है,हम लोगों ने भले ही अपनी मनःस्थिति के अनुसार अनुलोम,विलोम से जोड रखा हो।पर इतना तो तय है कि दुःख भी हम सभी के जीवन का अभिन्न हिस्सा है।

               हमारी धार्मिक आस्थायें,दर्शन और प्रेरणादायक गीत और रचनायें सदैव यह शिक्षा देते है कि यदि समय हमारी विचार इच्छा और कार्य के तदनुसार अनुकूल परिणाम न दें तो भी हम सबको अधीर नहीं होना है, बल्कि संयमित रहकर उस कठिन घडी की परीक्षा में खरा उतरना है क्योंकि इसी कालखण्ड में  मनुष्य के चरित्र और पौरुष में निखार आता है,दुख ही सच्चा साथी बनकर हमारी सभी प्रकार की क्षमताओं में सकारात्मक बृद्धि  के साथ जीवटता से भी भरता है,यही  समय, जिसमें अपने समीप के व्यक्तियों के चाल,चरित्र और चेहरा भी पढने का मौका देता है।  कवि रहीम ने कहा है-

रहिमन विपदा हूँ भली,जो थोडे दिन होय।

हित जनहित इस जगत में, जान पडत सब कोय।।

सच में प्रतिकूल समय, दुख या विपदा का अपना एक महत्व है जो पग पग पर सचेत करती है।सुख या अनुकूल समय तो दिन  के ढलते छाँव की तरह होती है, अतः घटती,बढती,आती और जाती रहती है।अतः सचेत रहकर इस परीक्षा की घडी का सामना करना चाहिये।

Written by ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला

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