"आर्तनाद"(कविता)
हे गिरिराज हे गिरधारी,
ये कैसी विपदा भारी है।
अलख अगोचर ओझल अमित्र ने,
किया प्रलय अति भारी है।
न शस्त्र रचा न अस्त्र सजा,
विगुल आक्रमण का बज उठा।
ऐसी आंधी आई जगत में,
कितने अपनो का हाथ छूटा।
तू ही सृष्टि तू ही विधाता,
जग चरणों में शीश नवाता।
सुन जन जन का आर्तनाद,
तू क्यों नही दौड़ा आता।
तूने महाभारत के युद्ध में,
था ऐसा इतिहास रचा।
अठारह दिनों के प्रहार से
था न कोई असत्य बचा।
इंद्र ने जब गोकुल में,
भयानक कोहराम मचाया था।
गिरिराज उठा कर तूने,
गोकुल को बचाया था।
आज फिर बिलख रही धरा,
है चारों ओर हा हा कार मचा।
एक बार सुदर्शन चक्र उठा,
इस दानव से जग को बचा।
हे केशव हे मधु सूदन,
शीश नवा करूं अश्रु अर्पण।
हे कुंज बिहारी हे गिरिधारी,
करती हूं चरणों में पूर्ण समर्पण।
Written by मंजू भारद्वाज
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