"जुगनू पकड़"(ग़ज़ल)

क्या लूटा है मैंने बतला, झूठे क़िस्से गढ़ा न कर

जन्मजात दौलत वाला हूँ, तोहमत यूँ ही मढ़ा न कर


भूखा नंगा था ये कहकर, मियां बेइज्जती करता क्यों

तू भी रंग जा मेरे रंग में,तिल का ताड़ बड़ा न कर


पहले ही से मैं बेचारा, मुश्किलात में फँसा हुआ

जख़्मों पर तू नमक छिड़क कर,मुश्किल और खड़ा न कर


मैं तेरा संगी साथी हूँ, बुरे वक़्त में दूंगा साथ

ज़रा दूर की सोच रे मूरख,बेमतलब ही लड़ा न कर


बड़े अदब से सर को झुकाए,हाथ जोड़ता रहता हूँ

थोड़ा अदब ओढ़ ले बाबू,अपना रुख़ यूँ कड़ा न कर


मेरी भी सुनने की हिम्मत, तू अपने में पैदा कर

जब देखो तब अपनी कहता, बात बात पे अड़ा न कर


बर्फ के तौंदे दिये दे रहा, ले अपना अहसान पकड़

बना धूप में घर ले अपना, मेरे सर पर चढ़ा न कर


थोड़ी सी तो शर्म बचा ले,कहीं काम आ जाएगी

पानी की जो बूंद न ठहरे, इतना चिकना घड़ा न कर


जुगनू पकड़ रौशनी करता, और दिखाता अकड़ बड़ी

चोरी कर के लिखता हूँ मैं, मेरी ग़ज़लें पढ़ा न कर

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