"लत"(कविता)
वर्तमान की
जीवन शैली
हो गयी है
क्षत-विक्षत
अधिकांश ने
पाल रखी है
अजब - गजब
नशे की लत !!
हर किसी के
अपने चिंतन
अपने -अपने मत
अपने हीं कारण असह्य
झेल रहे दुर्दांत गत !!
किसी को
झूठ की तलब ज्यादा
किसी को इश्क
बेसबब ज्यादा
किसी को सिर्फ
ख्वाइशें मुझपे
रहमत करें रब ज्यादा !!
कोई इश्क का रोग
पुरजोर लगाए बैठा है
कोई नफरत की आग
चहुओर जलाए बैठा है
कोई अपनों के गर्दन पर
तेज छूरी पिजाए बैठा है !!
अपने -अपने राग -द्वेष
अपने -अपने कमतर शेष
अपने अपने पूर्णविराम
सहनशीलता,धैर्य- विशेष!!
जिंदगी का हर लम्हा
नशे के नाम करने वाले
सच्चाई के राह पर
नहीं होते हैं ठहरनेवाले
देखने में अच्छे-भाले
लेकिन दिल के होते काले !!
कुर्सीयों की लत लगाए
राजनीतिज्ञ लोग बैठे हैं
जोड़-तोड़ की लत लगाए
गणितज्ञ लोग बैठे हैं !!
हाथ में लिए बोतल शराब
मुहँ में गुटखा चबाने वाले
प्राणों से भी ज्यादा
नशा छुपा कर रखने वाले
दिख जाते हैं गली -गली
पीते -खाते , चखने वाले !!
किसी को नशा
दौलत की
किसी को नशा
शोहरत की
किसी को नशा
मुहब्बत की
किसी को सिर्फ
इज्जत की !!
superb... nice...
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