"मोहलत"(कविता)

ओ समय के परिंदे

कुछ मोहलत दे दे

हो सके तो मीत बनके

कुछ नसीहत दे दे!!


कुछ दबी हुई जज्बातें कुछ अनकही सी बातें

मन कहता  कि बोलूं

दिल कहता  ना बोलूं !!


किसकी बातें सुनूँ मैं

कौन सी राहें चुनूँ मैं

एक तू ही सच्चा साथी

पढ़ तू ही दिल की पाती!


कुछ चाहती हूँ लिखना

जो पढ़ने लायक हो

कुछ चाहती हूं पढ़ना

जो लिखने लायक हो !!


गड़ाती हूँ नजर

नितांत दोपहर

दिख जाए कुछ ऐसा

जो सीखने लायक हो!!


अपने अवगुणों से

हर रोज झगड़ती हूँ 

बड़े गहनता से 

अन्तर्मन में झाँकती हूँ

आज हुआ क्या असर

किस हद तक गए निखर

कौन सी बुरी आदतें 

अब छूटने लायक हो !!


थमने की मोहलत दे

 रूह-प्रवाह को

क्षुधा-उदर रहित

मन की चाह को !!


ना उम्मीदी की बाहों में

साया दे उम्मीद का तू

पग-पग पर रोड़े राहों में

हौसला दे जय हिंद का तू


एक बार गले लगा ले

 अपना मुझे बना ले

तेरा होकर सदा रहूँगी

कोई शिकवा नहीं करूंगी

मत देना सीख बुरी की

 सर झुकने लायक हो !!

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