"सुन गुज़ारिश पवन-बारिश"(कविता)

 बहती चंचल पुरवाई आई

साथ अपने बून्द बारिश लाई

खुशहाली बरसाती आई

सरस् सन्देश सुनाती आई!!


भीषण गर्मी से बचाने को

तन -मन शीतल कर जाने को

धरा की प्यास बुझाने आई

सोंधी सुगंध महकाने आई!!


मेघों  की पालकी पर

ऋतुओं की रानी आई

झहर-झहर झम,

 झमा -झम

बरसाते निर्मल पानी आई

चहुदिशा  हरियाली छाई

बहती चंचल पुरवाई आई

साथ अपने बूँद बारिश लाई !!


घनघोर अंधेरा छाया

दिवस लगे निशा सरीखे

प्यास बुझा रही शिपियाँ

मधुरम स्वाति बूंद पी के !!

गोरिया के हृदय प्रांगण में

कलश -छलक छल छलके

स्वप्न सजीले पिया मिलन के

तन दहके ,मन  बहके 

कंगना डोले ,झुमका झूले

कर खनके कांच की चूड़ियां

कसक छुपाए सोचे हियरा

 कैसी  है ये मजबूरियां

बालम जी  रहते सामने

रख के चार गज की दूरियां !!


प्रकृति के आंचल पर

ये कैसी विपदा छाई

बोल सहेली पुरवाई

ये कैसी आपदा लाई !!


हे री पवन तू वापस जा

 बादल को भी साथ ले जा

कल आना सिर्फ हर्ष लेकर

नई भोर ,आस उत्कर्ष

लेकर !!

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