"नाकाबंदी"(कविता)

 नाकाबंदी करनेवाले

कितनों के घर तोड़ोगे

नियतगन्दी रखने वालों

कितनों के किस्मत फोड़ोगे !!

दरक रही मानवता 

अब तो तुम विराम दो

भटक रहे निरीह-जनों का

स्नेह-सरस् कर थाम लो !

 

किसी एक का जीवन 

सुधार कर तुम देखो 

 मन से क्रूरता, ईर्ष्या ,द्वेष

 निकाल तुम फेंको!!


 गली -गली में नाकाबंदी

करना अब तुम छोड़ दो

सच्चे पथ के पथिक बन जाओ 

सच्चाई से रिश्ता जोड़ लो !!

 शोर- शराबा,लूट खसोट

 वाली जिंदगी ठीक नहीं

दूजे को तड़पा कर अपनी

महफील सजाना ठीक नही


चार पहर की जिंदगी है

प्यार से बीता कर जाओ निमित-मात्र

 हो ईश्वर के

कुछ तो अच्छा 

कर के जाओ !!


उठा-पटक कोहराम 

मचाना

 जनता को बेजार 

रुलाना

अब भी वक़्त है त्याग दो

दर से लौट रहे दुःखियों को

उठो !प्रेम से आवाज दो !!

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