"वक़्त के हाथों मजबूर है हम"(कविता)
वक़्त न जाने क्यों हमें
ऐसे मोड़ पर ले आता है,
बीच राह में छोड़ कर और
खुद आगे बढ़ जाता है ।।
हम सिर्फ बेबस हो कर
ये सोचते रह जाते हैं,
क्यों हुआ? कैसे हुआ?
का उत्तर खोजते रह जाते हैं।।
वक़्त न जाने क्यों
ऐसा भी दिन दिखलाता है,
हर्षित, पुलकित नैनों में
अश्क-ए गम दे जाता है ।।
हम खामोश बेदिली से
अश्कों को पी जाते हैं,
हर सम्भव कोशिश के बाद
कुछ भी तो नहीं कर पाते हैं ।
कोई विज्ञान वक़्त पर बन्दिश
लगा सका नहीं है अबतक ,
वक़्त दिखलाएगा करतब
ये प्राण तन में है जबतक ।।
वक़्त के हाथ मे प्रश्नपत्र है
बस परीक्षा हमें हीं देना है,
जटिल प्रश्न हो या सरल हो
हल का निश्चय हमें हीं करना है !!
हल ढूंढते और सुलझाते
एक दिन हम मर जायेंगे,
नेकी बदी जो भी है पास
सब यहीं धरे रह जाएंगे !!
Written by वीना उपाध्याय
superb....
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