"आसमान से आगे"(कविता)

 गम-ए जिंदगी से

हम क्यों आखिर भागें

और भी तो उम्मीदें हैं

आसमां  के आगे !!


पंख -परवाज हौसलों का

लगाकर

पराजय के डर को मन से

भगाकर

झुके शीश ऊँचे से ऊँचे उठाकर

पूछ लो तुम फलक से

मंजिल का पता 

समझ -सुन लो 

जीत की दास्ताँ !!


 उम्मीदें नई ले चढ़ो आसमां पर

उतार कर शशि-चंद्र 

 लाओ जमीं पर !!


ठान लो ज़िद मन में 

गर ऊँची उड़ान का

सोचना क्यूँ ,कितना है

 कद आसमान का !!


करो लक्ष्य-भेदन 

घटाओं के पार

बरसाओ खुशी बूँद

नीर मूसलाधार !!

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