"फादर्स डे"(कविता)

साहित्य सागर के गहरे तल में उतरने के बाद कुछ शब्द मिले ,जो सिर्फ

मेरे आदरणीय पिता जी की यादों में समर्पित कर रही हूँ।

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वट तरु सम दृढ़ पूज्य पिताजी

अनमोल और बहुमूल्य पिताजी

सब कुछ खुद ही तन्हा सहते

नहीं बताते कुछ भी पिताजी


स्वयं धूप में खड़े अडिग

और हमको बनते छांव पिताजी

बच्चों की हर मांग पूर्ण कर

खुद अभाव को सहते पिताजी


जीवन के भंवरों में फंसे हम

कुशल नाखुदा बने पिताजी

जीवन के हर विकट वार से

घाव का मरहम बने पिताजी


उनका है स्थान उच्चतम

मगर बहुत ही विनम्र पिताजी

सदा सत्य पर अटल और

मिथ्या से लड़ते सतत पिताजी


हो शरीर में या हो मन में

हर पीड़ा हर लेते पिताजी

भुला न पाऊंगी इस जन्म में

आपका मैं उपकार पिताजी


द्रवित लोह सम अनुशासन में

बद्ध आपका प्यार पिताजी

आपके द्वारा रोपित पौधों से

आज चमन बन गये पिता जी

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