"अजब इंसान"(ग़जल)
हमारी वफा की बार-बार आजमाईश करते हो
खुद ना जाने कितने खेतों की पैमाइश करते हो
जमीं पर नहीं है तेरा कहीं कोई ठौर ठिकाना
सनकी हो, चांद तारों की फरमाईश करते हो
तेरे जीने का अंदाज, समझ में नहीं आया मुझे
तुम ही लडते हो, तुम ही समझाईश करते हो
अजब सिरफिरे इंसान हो,तुम इस दुनिया में
बोते बबूल हो,और आम की ख्वाहिश करते हो
बड़े शातिर हो तुम,लोगों को बेवकूफ बनाने में
छिपा कर हकीकत, झूठ की नूमाईश करते हो
असंभव को संभव करना, कोई तुमसे सीखे
तुम हिमालय को हिलाने की,गुंजाईश करते हो
Written by कमल श्रीमाली(एडवोकेट)
nice.... superb.....
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