"आध्यात्मिक-गजल"


हमें  हकीकत  से रूबरू होना होगा

जो पाया है यहां से,यही खोना होगा


क्यों परहेज हैं तुम्हें मिट्टी को छूने से

एक  दिन इसी  मिट्टी में  सोना होगा


सब  जानते हैं  फिर भी हाहाकार हैं

बस  इसी  बात   का  तो रोना  होगा


सोच  लो, समझ लो, जान  लो  सब

अभी  वक्त  हैं, फिर  पछताना  होगा


मिला मानव तन तो मुक्ति पालो वर्ना

कई  योनियों  में  आना  जाना  होगा


तलाक  के लिए क्यों  जलील होते हो

थामा है हाथ उसका तो निभाना होगा


वक्त निकल  रहा है कुछ तो सोच बंदे

कब इस मिट्टी  का कर्ज़ चुकाना होगा


बढ़ गए हैं पाप बेतहाशा इस धरा पर

फिर किसी अवतारी को बुलाना होगा

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