"बिगड़ा माहौल: कोरोना की हकीकत"(कविता)
कोरोना की हकीकत व बचाव को व्यक्त करती मेरी यह रचना
बाहर माहौल बिगड़ा है
दुश्मन ज्यादा तगड़ा है
तुम घर में नहीं रहते हो
इसी बात का लफड़ा है
तेरी गफलत के कारण
दुश्मन छाती पे चढ़ा है
हलके में मत लो इसको
ये जान लेने को अड़ा है
कहीं ढूंढने नहीं जाना हैं
बाहर दरवाजे पे खड़ा है
जिसने भी की है गलती
वो अस्पताल में पड़ा है
जायेगा वो सीधा हरिद्वार
जिसको इसने पकड़ा है
उतरता जब गले के नीचे
खाता तुरंत ये फेफड़ा है
कोई मास्क पहनता नहीं
यही तो हमारा दुखड़ा है
मत आने दो घर के अंदर
चाइना का यह भगोड़ा है
आफत तुमने खुद बुलाई
हाथ नहीं धोने का रगड़ा है
कोई तोड़ नहीं इसका यहां
आफत भरा यह लफड़ा है
दो गज दूरी अब है जरूरी
बचाव यही थोड़ा-थोड़ा है
Written by कमल श्रीमाली(एडवोकेट)
superb sir.....
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