"जो देखा वो कहा इस रचना में"(कविता)
हमने मौत का मंजर देखा है
आंसूओं भरा समंदर देखा हैं
स्याह रातें घटाघोप अंधेरा था
अब आस का दिनकर देखा हैं
क्या क्या नहीं देखा इस दौर में
अपने जाते, बन पत्थर देखा है
क्रंदन, रुदन,विलाप और लाशे
मौत का तांडव जमकर देखा है
कैसे विश्वास करें अब साहिब
पीठ में गड़ते खंजर देखा है
ठीक-ठाक वो गया अस्पताल
लौटा तो अस्थि-पंजर देखा है
Written by कमल श्रीमाली(एडवोकेट)
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