"आज की नारी की अकुलाहट"(कविता)

हाथों में छैनी,हथौड़ी औजार रखती हूं

हौंसले बड़े दमदार रखती हूं

युगो की बंदिशे तोड़ने निकली हुं

मुट्ठी में वक्त की रफ्तार रखती हूं


कमतर नहीं रही,खुलेआम बताती हूं

ऑटो,रिक्शा,ट्रेन,वायुयान उडाती हूं

छूआ है मैंने हिमालय को कई बार

निकल चुकी हूं मैं अंतरिक्ष के पार

जमाना अब ना डूबा सकेगा नाव मेरी

हाथों में कसकर पतवार रखती हूं

हौसले बड़े दमदार रखती हूं


बनाए नए रिकॉर्ड,पुराने फाड़े हैं

हमने हर क्षेत्र में झंडे गाड़े हैं

नहीं रही मैं निरीह असहाय अबला

अंतरिक्ष भेदा,बन कल्पना चावला

अपने देश की रक्षा के खातिर

कंधों पर हथियार रखती हूं

हौसले बड़े दमदार रखती हूं


कहां नहीं हूं मैं,बता मुझे

धरती से आसमान तक का है,पता मुझे

अब मैं सहमी हवा नहीं,विकराल आंधी हूं

मैं ही रानी लक्ष्मीबाई,मैं ही इंदिरा गांधी हूं

ऑफिस भी जाती हूं,घर भी संभालती हूं

पूरे घर का दारोमदार रखती हूं

हौसले बड़े दमदार रखती हूं


अब चीरहरण दुर्योधन का होगा

खुले आम वध दुशासन का होगा

जुए में अब मेरा नंबर नहीं आएगा

दांव पर युधिष्ठिर को लगाया जाएगा

कृप ,द्रौण,भीष्म को वीर कैसे कहूं

इन पर इल्जाम दागदार रखती हूं

हौसले बड़े दमदार रखती हूं


हम यूं ही नहीं आसमान पर छाई है

मुद्दतों बाद अंधेरों से निकल कर आई है

हमें सिर्फ इस्तेमाल की चीज समझने वाले

अब अपने इरादे,तुरंत बदल डाले

तलवों में ऐसे कई बरखुरदार रखती हूं

हौसले बड़े दमदार रखती हूं


हाथों में छैनी हथौड़ी औजार रखती हूं

हौसले बड़े दमदार रखती हूं

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