"क्षत्राणी"(कविता)

 एक क्षत्राणी की सर्वोच्च राष्ट्र भक्ति की ऐतिहासिक कथा


इतिहास भरा क्षत्रिय वीरों से

रणबांकुरे रणधीरो से।

राजस्थान वीरों की धरती

प्रणाम सारी दुनिया करती।


क्षत्रियों से कम नहीं क्षत्राणीया

अजब इनकी बलिदानी कहानियां।

क्षत्रियों की हैं मुकुट मणि 

पन्ना हाडी  पद्ममनि।


इनसे बढ़ कर एक क्षत्राणी

आज सुनेगें उसकी कहानी।

नाम था उसका हीरादे

थे उसके अटल ईरादे।


शूरवीर था उसका सैया

नाम था उसका वीका दहिया।

वह वीर था जांबाज था साहसी था

राजा कान्हदेव का विश्वासी था


जालौर सोनगरो बात थी

काली अमावस्या रात थी।

अपने घर में बैठी हीरादे

पति प्रेम की लेकर मिठृठी यादें

पाई थी उसने क्षत्रिय धर्म की शिक्षा

भोजन पर थी प्रियतम की प्रतीक्षा।


 सशंक चाल से वो आया

साथ भारी गठरी लाया।

किया दरवाजा बंद सांकल चढ़ा दी

गठरी प्रियतमा के आगे बढ़ा दी।


खनक से उसे अंदेशा आया

सोचा इतना धन कहां से लाया।

पति की चोर निगाहें भांप गई

धन की हकीकत जान कांप गई।


अब विका दहिया बोला था

गठरी का राज खोला था।

छाये युद्ध के बादल काले

आगे दुर्दिन आने वाले।


खिलजी सेनापति आया था

ये गठरी साथ में लाया था।

हम भी वक्त के सताए हैं

किले के कुछ राज बताएं हैं।


कल खिलजी सेना आएगी

किला फतह कर जाएगी।

आज मिली धन की गठरी प्यारी

कल मिलेगी किले की सुबेदारी।


मैं राजा तुम रानी होगी

जीवन की नई कहानी होगी।

कब तक अभावों को सहोगी

तुम गहनों में लदी रहोगी।


जीवन हम दोनों का झुल झुलैया होगा

आज राजा कान्हदेव कल दहिया होगा।

गठरी ने कुछ ऐसा विष घोला था

हीरादे का क्षत्रिय लहू खोला था।


ठीक नहीं दुश्मन से यारी

मत करो वतन से गद्दारी।

तुम तलवार के धनी हो

तुम तो वैसे ही धनी हो।


गठरी फिर लौटाना होगा

दुश्मन मार गिराना होगा।

राष्ट्र के आगे सुबेदारी धूल है

बदलो फैसला यह तेरीभूल है।


मैं अभावों में जी लूंगी

कमतरी को भी पी लूंगी।

क्षत्रिय धर्म के लिए अड़े हैं

राष्ट्र के लिए सदा लड़े हैं।


वीर हो तुम धीर हो

महाबली महावीर हो।

समझा रही थी खाना खाते

असरहीन हुई उसकी बातें।


वह लालच में पडा रहा

अपनी जिद पर अड़ा रहा।

बन शेरनी वो गरजी थी

वीरता तेरी फर्जी थी।


सब तेरी निष्ठा पर अंगुली उठाएंगे

बेटे गद्दार की संतान कहलाएंगे।

सुनी बातें की आनाकानी

हीरादे की  एक न मानी।


खा के खाना वह सो गया

मीठे सपनों में खो गया।

मैं राजा बन ऐठूगां

कल गद्दी पर बैठूगां।


हुआ वह गहरी नींद में चूर

हीरादे से नींद कोसों दूर।

कौन भरेगा इसकी भरनी

राष्ट्र भुगतेगा इसकी करणी।


तन बदन में लग गई आग

पति लगा जहरीला नाग।

अब उसे  ही कुछ करना होगा 

जीना होगा या मरना होगा।


मां का दूध ना लजाने दूंगी

राष्ट्र पर आंच ना आने दूंगी।

पति ने आज किया दगा है

पूरा राष्ट्र दांव  लगा है।


उसके आगे था प्रश्न खड़ा

राष्ट्र बड़ा या सुहाग बड़ा।

राष्ट्र पर ंघोर संकट छाया है

अब निर्णायक क्षण आया है।


हौसला दिया मां भवानी ने

लिया निर्णय कड़ा क्षत्राणी ने।

आंखों में छाया उसके काल

निर्णय लिया बड़ा विकराल।


जो किले के गुप्त राज बताएगा

वो कल सूरज नहीं देख पाएगा।

कांप गया था हाथ  एक बार

जब पकड़ी थी उसने तलवार।


किया था भरपूर प्रहार तलवार से

सिर काट दिया पति का एक ही वार से।

वह रणचंडी बन आई थी

पति के खून में नहाई थी।


मिटा दी अपने हाथों की मेहंदी

सर लिया हाथो में और चल दी।

राजा को संदेशा भिजवाया

मिलने उसे पोल में बुलवाया।


सारी हकीकत उसे बता दी

सिर की भेंट उसे चढ़ा दी।

कैसे माना होगा इसका मन

सोच के राजा रह गया सन्न।


तभी इतिहास एक पल रुक गया

कदमों में उसके राजा झुक गया।

सदियां याद रखेगी तेरी कहानी

ना हुई ना होगी ऐसी क्षत्राणी।


उसने जीवन अपना तार दिया

सुहाग राष्ट्र पर वार दिया।

सुहाग अपना लुटा दिया

राष्ट्र को उसने बचा लिया।


सुनते अभी उसकी कहानियां

क्षत्रिय से कम नहीं क्षत्राणीया।

इतिहास भरा क्षत्रिय वीरों से

रणबांकुरे रणधीरो से।


राजस्थान वीरों की धरती

प्रणाम  सारी दुनिया करती।

क्षत्रिय से कम नहीं क्षत्राणीया

गजब इनकी बलिदानी कहानियां।

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