"नौजवा इश्क़"(ग़जल)
कोई दाद, कोई खुजली, कोई खाज निकले
मेरे दोस्त सारे कैसे धोखेबाज़ निकले
जो करता था मेरी तारीफ मेरे सामने
मेरी पीठ पीछे कैसे उसके अल्फाज निकले
कब तक झूठी हां में हां मिलाओंगें उसके
कभी तो उसके विरोध में भी आवाज निकले
सारे के सारे नौजवान इश्क़ के मरीज हैं
कोई तो भगत सिंह जैसा अकड़बाज निकले
सांप निकले फिर लाठी पीटती,पुलिस हमारी
जेब गर्म हो तो,कैसे कातिलों से राज निकले
झूठे डूबे रहे उसकी मोहब्बत में आज तक
हमें पता ही ना चला वो कब नाराज निकले
कभी फटी टी-शर्ट में साइकिल चलाता था वो
वजीर क्या बना, गजब उसके अंदाज निकले
किला फ़तेह कर लिया था उस अकेले शेर ने
सबने बुजदिल समझा,तुम तो जांबाज निकले
Written by कमल श्रीमाली(एडवोकेट)
धन्यवाद मेम
ReplyDeleteAaj ka jevan shikari jisha jeena chahiey,..
ReplyDeleteJo shamney hai apna nahi
Jo dikhei nahi deta wahi
Apna hai
Superb Kamal sir
ReplyDelete