"कोई अपना अकेला चला जा रहा है"(कविता)

बुजुर्ग साइकिल में 

लास लेकर जा रहा है। 

कोरोना मौत बनकर 

आ रहा है। 


जीवन भर साथ देने का 

वादा किया था जो, 

जीवन साथी उसे ही 

निभा रहा है। 


जीर्ण शरीर दुर्बल 

हाथों में बल नहीं, 

लगा पा रहा है। 


बीच राह में बिछड 

जाने का गम शीने में 

दबा जा रहा है। 


कोरोना का भय 

इस कदर व्याप्त है। 

कि कोई नहीं 

हाथ लगा रहा है। 


जीने मरने की कसम 

खाई थी साथ में। 

कोई अपना अकेला

 चला जा रहा है।

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