"बेखौफ कोरोना"(कविता)
बेखौफ है कोरोना
खुले आम जा रहा है।
इनसान मर रहा है,
भगवान डर रहा है।
हमने तो अपने खातिर
खुदा गाड भी बनाये।
ऐसी विपत्ति देखो
न कोई काम आ रहा है।
अंधाधुंध पेड काटे
होली जला रहा है।
आक्सीजन के खातिर
फिर तडफडा रहा है।
पर्वत काट करके
सडकें बना रहा है।
नदियों की रेत मन भर
खोदे ही जा रहा है।
पर्यावरण असंतुलन
जी भर बढा रहा है।
कुदरत का सूक्ष्म सा कण
क्या कहर ढा रहा है।
कई प्रजातियाँ विलुप्त हो गई मानव भी टकरा रहा है।
प्रकृति के प्रकोप से
खौफ खा रहा है।
Written by सुरेश कुमार 'राजा'
Nice
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