"कब बंदर से मानव बना आदमी"(कविता)
पेड पत्तों पर लटका हुआ आदमी
कब बंदर से मानव बना आदमी।
रीझना खीझना कूदना फाँदना
आज सडको पर कैसे खड़ा आदमी।
रीडविहीन जीवों से हुई उत्पत्ति जिसकी
पूरी दुनिया का शहंशाह बना आदमी।
जंगलो को जलाया पर्वतो को खोदकर
खुद के गड्ढे मे कैसे गिरा आदमी।
रेत नदियो की ढोता रहा उम्र भर सूखे किनारों में कैसे पडा आदमी।
मैं और मेरा है ऊंचा धरम इस भरम मे ही लडता रहा आदमी।
आदमी आदमी से प्यार करे
ठंडे मन विचार कर क्यों ना सोच रहा आदमी।
Written by सुरेश कुमार 'राजा'
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