"त्रासदी"(कविता)
श्वेत कफन था रक्त रंजित है,
कितने धवल आकाश तले।
शव निकल-निकल गवाही देते
अदालत बनकर पवन चले।
भीड-भाड कोलाहल से
जब मन अशांत हो जाता था।
नदी तीर निर्मल नीर
नयनो से प्यास बुझाता था।
त्रासदी का बीभत्स दृश्य
न जाने कितने लोग गडे।
गुमनामी के ढेर के नीचे
रेत की चादर ओढ पडे।
गंगातट करते थे बिचरण
नवयौना कब साथ चले।
विरह की दावानल भड़की
प्रेयसी प्रियतम साथ जले।
Written by सुरेश कुमार 'राजा'
nice.... superb.....
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