"त्रासदी"(कविता)

 श्वेत कफन था रक्त रंजित है, 

कितने धवल आकाश तले। 

शव निकल-निकल गवाही देते 

अदालत बनकर पवन चले। 


भीड-भाड कोलाहल से

जब मन अशांत हो जाता था। 

नदी तीर निर्मल नीर 

नयनो से प्यास बुझाता था। 


त्रासदी का बीभत्स दृश्य 

न जाने कितने लोग गडे। 

गुमनामी के ढेर के नीचे 

रेत की चादर ओढ पडे। 


गंगातट करते थे बिचरण 

नवयौना कब साथ चले। 

विरह की दावानल भड़की 

प्रेयसी प्रियतम साथ जले। 

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