"प्रकृति का बदला रौद्र रूप"(कविता)

बिजली की टंकार से सहमा 

धरती का हर कोना। 

लगे सोचने लोग घरो में

हाय अब क्या होना। 


रात घनी थी नींद बड़ी थी, 

हौले हौले पवन चली थी। 

बादल से बादल टकराया 

मुश्किल कर दिया सोना। 


प्रकृति ने बदला रौद्र रूप है,

प्रलयकारी यह प्रकोप है। 

सावधान अब ठहर जा मानव 

नही पडेगा सबको रोना। 


बिजली की टंकार से सहमा 

धरती का हर कोना।

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