"ये. खामोशी नहीं अच्छी"
आज क्यों बेचैन हो तुम
न देखा था तुम्हें पहले कभी ऐसे क्षणों में
कठिन है इस स्थिति में प्रिय निर्वाह करना
मिलाकर आँख शरमाना झुकाना हाथ मलना
दबाना होंठ दाँतों के तले और आह भरना
उषा की लालिमा थीं आज कैसे रैन हो तुम
आज क्यों बेचैन हो तुम
हँसी-- फूलों का झरना, केश-- इतराती घटा
नयन-- अमृत कलश और वक्ष-- कोई उपमा ही नहीं
सलोनी साँवली सूरत अदाएँ शोख़ चंचल
बहुत ढू़ंढ़ा मिली तुम सी कोई प्रतिमा ही नहीं
सत्य मानो विधाता की अद्वितीय देन हो तुम
आज क्यों बेचैन हो तुम
मचलती साँस की अव्यक्त सी ये छटपटाहट क्यों
धड़कता दिल अविरल गीत कैसा गा रहा है
उमड़ती भावना अंतस में क्या कुछ कह रही है
वो भय कैसा है जो उसको दबाए जा रहा है
ये ख़ामोशी नहीं अच्छी कि मीठे बैन हो तुम
आज क्यों बेचैन हो तुम
Written by विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'
बहुत बढ़िया ।
ReplyDeletesuperb....
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