"बेटी बोझ नहीं है"(कविता)
बेटा आया तो ढोल बजे और ख़ूब सुना संगीत गया
मुझे पढ़ाया नहीं घरेलू कामों में ही उलझाया
बेटे को पढ़ने की खातिर दूर देश भी भिजवाया
बिन दहेज़ कमजोर से घर में मेरा झटपट ब्याह किया
बेटे की शादी में लेकिन दान-दहेज़ अथाह लिया
बहुत हुआ उत्पीड़न लेकिन मैं हँस हँस कर झेल गई
कई बार परिवार की खातिर प्राणों पर भी खेल गई
पिता अकड़ में चूर रहे अम्मा निशि दिन कुढ़ती रहती
हालातों के बीच बेचारी टूट टूट जुड़ती रहती
समय ने जब करवट बदली तो एक भयंकर पैंच फँसा
कुछ वर्षों के बाद पूत जब जा अपनी ससुराल बसा
माँ ये सदमा झेल न पाई समय से पहले चली गई
उसने जो थी बुनी कल्पना कैसे कैसे छली गई
पिता का टूटा अहम बुढ़ापा जैसे एकाएक आया
रिश्ते सारे हुए खोखले छोड़ गया अपना साया
किया मशविरा पति से हम बापू को अपने घर लाए
बच्चे नाना जी को घर में पाकर बेहद हर्षाए
यहाँ सुखी हैं किन्तु फ़िर भी ग्लानि उनको तड़पाती
करके याद पुरानी बातें अक्सर नींद नहीं आती
जब देखो तब कहते रहते मैंने बहुत किये हैं पाप
बिल्कुल सूख हुए वो कांटा नहीं छूटता पश्चाताप
पिता का टूटा अहम बुढ़ापा जैसे एकाएक आया
ReplyDeleteरिश्ते सारे हुए खोखले छोड़ गया अपना साया
superb... lines sir...