"बेबसी"(कविता)

 जब जब स्वयं की कमजोरी से

चला जाता है अपना भविष्य


किसी निष्ठुर क्रूर कठोर के हाथ में

तब तब होता है जन्म एक त्रासदी का

जिसकी यातनाओं को झेलने के लिये

कृत्रिम मुस्कान और कृतज्ञ चेहरे का आवरण


डाल लेना पड़ता है स्वयं पर

पूर्वाग्रहों की समस्त वेदनाएँ

उज्जवल भविष्य के ताप से

सूख जाती हैं

या

वाष्पायन की गुप्त ऊष्मा

झुलस देती है उन्हें

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