"ईर्ष्या"(कविता)


कल कल करती नदिया तीरे

ठण्ड़े जल के बहुत निकट

वृक्षों के गहरे झुरमुट में

लम्बी लम्बी शाखाओं पर

बड़े जतन और परिश्रम से

तिनका तिनका चुन चुन कर

उत्साहित हो बया समूह ने

सुंदर सुघड़ घरौंदों का

निर्माण किया --

वंश वृद्धि के हेतु

सजाए अण्ड़े उनमें


एक प्रातः जब निकला सूरज

हर्षित होकर बया झुण्ड़ ने

गाये गीत मधुर मनभावन

बंदर के इक बड़े टोल को

ना जाने क्यों लगा अपावन

टूट पड़े नक्सलियों जैसे

डाली डाली पर वे क्रूर

तार तार हो गये घरौंदे

और अण्ड़े भी चकनाचूर


बेचारी निर्दोष बया के 

बिखर गये सारे अरमान

लाचारी और मजबूरी में

भागीं तुरत बचा कर जान

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