"एकाकी"(नवगीत)
अस्तांचल गया सूर्य, मंद पड़ा प्रकाश।
नीड़ विहग लौट रहे, साँझ हुई उदास।
भाव उमड़ घुमड़-घुमड़,
धनु संधान रहे।
और असहाय के यूँ,नौंचत प्रान रहे।
सूनी चट्टान जहाँ, कोई नहीं पास।
नीड़ विहग लौट रहे, साँझ हुई उदास।
शंख सा आकाश है, गोधूलि जो उड़ी।
पीर सी मीठी चुभन, सुखा रही पंखुड़ी।
नीर नयन गहन अगन,रोकते उल्लास।
नीड़ विहग लौट रहे, साँझ हुई उदास।
मन की व्यथा उड़ेलें,स्वर-व्यंजन सारे।
कण्ठ घुला क्रंदन है, दिवस दिखें तारे।
जल विहीन छटपटात,मत्स्य सा उजास।
नीड़ विहग लौट रहे, साँझ हुई उदास।
Written by विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'
superb.......
ReplyDelete