"झूठ इतना"(ग़ज़ल)
आदमी तू डरा डरा क्यों है
बिन मरे ही मरा मरा क्यों है
मौत आए न रोक पाएगा
मर रहा फ़िर ज़रा ज़रा क्यों है
पैर तेरे ये लड़खड़ाते हैं
बोझ सर पे बड़ा धरा क्यों है
हो सके तो लगा मरहम इसपे
घाव तेरा हरा हरा क्यों है
साथ तेरे न कुछ भी जाएगा
हाथ तेरा भरा भरा क्यों है
ज़रा सी बात को दिल पे लगा लेता है
आदमी ऐसा मसखरा क्यों है
काश ये सच कभी न हो पाए
झूठ इतना खरा खरा क्यों है
Written by विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'
nice.... superb.....
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