" रे श्रमिक"(कविता)
क़िस्मत में लिक्खा है तेरी घोर ग़रीबी से ले टक्कर
पेट पीठ से चिपक रहेगा तू क्या खाएगा घी शक्कर
भोर हुई उठ उठा हाथ में गैती कस्सी ढूंढ़ ले धंधा
तेरे साथी चले गये सब दौड़ मिलाले उनसे कंधा
पिछड़ गया तो पछताएगा खाली हाथ लौट आएगा
बच्चे जब रोटी मांगेंगे क्या कहकर तू बहकाएगा
उन्हें दिलासा देते देते आ ना जाए तुझको चक्कर
पेट पीठ से चिपक रहेगा तू क्या खाएगा घी शक्कर
पत्नी है बीमार बहुत और बेटी के भी करने पीले हाथ
फूँस गल गया छान टपकती ऊपर से आने वाली बरसात
दवा दहेज़ जुटाना होगा छप्पर नया बनाना होगा
पेट की अगन बुझाने हेतू चूल्हा नित्य जलाना होगा
माथा पकड़ निराशा में तू कहीं बैठ ना जाना थक कर
पेट पीठ से चिपक रहेगा तू क्या खाएगा घी शक्कर
Written by विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'
superb......
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