मुकद्दर
कैसा लगता है तब
जब दो दिन की बासी सूखी
बाजरे की आधी रोटी को
धरती पर धरे बड़ी उत्सुकता से
कोई लम्बी हरी मिर्चें रगड़ रहा हो
फ़िर चिथड़े हुई कमीज़ के बाएँ आस्तीन से
आँख नाक में आया पानी पौंछते हुए
खाली कुल्हड़ भरने घड़े तक जाए
और पलट कर देखे --
लुटेरा सा एक कौआ झपट कर
उस चिरप्रतीक्षित सूखे टुकड़े को
चौंच में दबा झौंपड़ी के बाँस पर जा बैठे
पंजों में पकड़ खाने लगे।
Written by विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'
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