"एक चने ने"(कविता)

 मेरे आँगन रोज सवेरे बुलबुल आती एक

सच्च बोलो-सच बोलो की मधुर लगाती टेक

मधुर लगाकर टेक मुझे हैरान करे

कैसी खोटी बातें ये नादान करे


झूठा और बेईमान भला सच कैसे बोले

ज़हर बेचने वाला अमृत कैसे तौले

मूरख पंछी मुझको कैसी सीख दे रहा

नहीं चाहिये बिन मांगे क्यों भीख दे रहा


ढूंढ़ कोई घर और यहाँ ना दाल गलेगी

मीठी-मीठा बोली मुझको नहीं छलेगी

दाना डाल दिया है खा या हो जा फुर

सोच रहा क्या देख रहा क्यों टुकुर-टुकुर


भड़काया तो पछताएगा रार बढ़ेगी

जीवन भर नहीं भूले ऐसी मार पड़ेगी

पंछी फुदक-फुदक कर बोला -- सच बोलो

मेरे दिल ने कहा -- यार आँखें खोलो


क्रोध पे पानी डाला एक परिंदे ने

बदल लिया मन इस दुर्दांत दरिंदे ने

पर उसके साहस को मैं नहीं रहा पचा

एक चने ने भाड़ फोड़ इतिहास रचा

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