"मन बैरी"(कविता)
मन बैरी जाने क्या सोचे,क्या-क्या चाहे
कभी पराई पीर छीन लेना चाहे
कभी पराई बीर छीन लेना चाहे
चाहे कभी लुटाना दौलत दोनों हाथ
कभी पराई खीर छीन लेना चाहे
मन बैरी जाने क्या सोचे, क्या-क्या चाहे
कभी कुलाँचें भरने अम्बर में जाए
कभी महासागर की तलछट ले आए
कभी काट लेता सिर अपने अपनों के
कभी पराई लाश संग मरघट जाए
मन बैरी जाने क्या सोचे, क्या-क्या चाहे
Written by विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'
nice........ superb........
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