"मैं वो मीठी याद नहीं हूँ"
है कोई जो पत्नी की मनुहारों में हो व्यस्त नहीं
है कोई जो पत्नी के व्यवहारों से हो त्रस्त नहीं
होंगे बहुत भाग्यशाली पर मैं कोई अपवाद नहीं हूँ
जिसे ग़ौर से सुना गया हो मैं ऐसी फरियाद नहीं हूँ
काले किये हाड़ बहुतेरे फ़िर भी भृकुटी रही तनी
इच्छाओं की ज़रूरतों पर मार हमेशा रही बनी
भाग भाग कर थक जाता विश्राम का जब जब होता मन
तब ख़याल ये ही आता कि घर में होगी रार घनी
लेकिन कभी मर्द की भाँति किया न हो प्रतिवाद नहीं हूँ
करता क्या जिम्मा मेरा था मुझको ये सब करना ही था
'विवाह बिना निर्वाह नहीं' इस उक्ति को वरना ही था
'शादी तो बरबादी है' ये बहुत बाद में चला पता
मजबूरी और फ़िर समाज के तानों से तरना ही था
जिससे पहली बार हुआ हो केवल वो उन्माद नहीं हूँ
दया धर्म और हया शर्म को अपनाया ये हाल हुआ
रंग जाता औरों के रंग में क्यों न मालामाल हुआ
हूँ बेहद संतुष्ट आत्मा मेरा देता है आशीष
इसी सहारे हे ईश्वर ये मितभाषी वाचाल हुआ
इस दुनिया का तुम जानो मैं 'उस' घर में बरबाद नहीं हूँ
परछाईं सम पीछा करती अंधकार में रही न साथ
जीवन के आख़िरी दिनों में क़िस्मत का ऐसा परिहास
पूर्व जन्म के संस्कार -- कुछ ज्यादा ग़लत किया होगा
अब तो अपनी बीनाई भी ये लो दिखती बहुत उदास
रखें स्मृति पट पर मुझको मैं वो मीठी याद नहीं हूँ
superb... heart touching....
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