"बाबा"(नवगीत)

 टूटे टप्पर का ढाबा,पौली की तरेड़ जैसा।

हो गया निस्पात बाबा, एक सूखे पेड़ जैसा।


ठूंठ सी बहियाँ पे झूल,पींगें बढ़ाती पौत्री।

सिहर कर निकली बगल से,भयभीत सी गंगोत्री।

क्षितिज पर चन्दा खड़ा है, तिमिर से मुठभेड़ जैसा।

हो गया निस्पात बाबा, एक सूखे पेड़ जैसा।


अंग-अंग भेंट घात की,तार-तार होती चमड़ी।

श्रम-स्वेद असीम पातकी,गांठ ना कोई दमड़ी।

हलस कंधे धरे आए,लस्टपस्ट अधेड़ जैसा।

हो गया निस्पात बाबा, एक सूखे पेड़ जैसा।

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