"लहू बहता रहेगा"(कविता)
जब तक होंगी नहीं
कोशिशें पुरजोर
इस आतंकवाद या
नक्सलवाद जैसी
समस्या की जड़ तक
जाने की
और उनकी नब्ज पहचानकर
बीमारी को
समूल मिटाने की,
देश के जवानों का लहू
यूं ही बहता रहेगा,
उनके इस तरह
असमय चले जाने का
मलाल चाहने वालों को
यूं ही रहता रहेगा।
जब तक करती नहीं
सारी सरकारें
दलगत राजनीति से
ऊपर उठकर
देश के व्यापक हित की
सोच रखकर
इंसानियत के आधार पर
हर क्षेत्र के सर्वांगीण
विकास की राजनीति,
लोगों में सत्ता के प्रति असंतोष
यूं ही पनपता रहेगा,
विद्रोह का ज्वालामुखी
रह-रहकर लोगों में
यूं ही धधकता रहेगा।
जब तक होती रहेगी
नजर अंदाज जमीनी हकीकत,
शीर्ष स्तर पर फैसले
लिए जाते रहेंगे
अयोग्य अफसरों के द्वारा,
युद्ध की रणनीति
बनती रहेगी दूर कहीं
वातानुकूलित कमरों में
बिना वस्तुस्थिति की
पूरी जानकारी के,
जवानों को अपनी जान से
हाथ धोना पड़ेगा,
उनके परिवार और देश को
खून के आंसू रोना पड़ेगा।
Written by जितेन्द्र 'कबीर'
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