"इंसान का दिमागी विलास"(कविता)

भूख से पीड़ित इंसान

भूल कर अपनी सारी शर्म-लिहाज

रोटी के एक टुकड़े के खातिर

त्याग दे सकता है

सामाजिक नैतिकता के सारे आयाम,

भूखे पेट ने सिखाया है उसे

कि वास्तव में रोटी ही है 

उसका भगवान

और दुनिया में ज्यादातर लोगों की आस्था

है केवल भरे हुए पेट का विलास।


अस्तित्व को जूझता इंसान

भूल कर अपनी सारी धर्म-जात

अपनी जान बचाने की खातिर

त्याग दे सकता है

जन्म से ओढ़ाए गये धर्म-जाति संस्कार,

जिंदा बचे रहने की जद्दोजहद ने

सिखाया है उसे

कि वास्तव में अपना अस्तित्व बनाए रखना

ही है जीव का एकमात्र धर्म

और दुनिया की बाकी सब धर्म-जात

हैं केवल इंसान के दिमाग का वक्ती विलास।

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