"महामारी की आग में आहुति"(कविता)

इस देश में कोरोना महामारी फैलाने में है

बहुत सारे लोगों का योगदान

जिनकी नासमझी-लापरवाही के चलते अब

हजारों-लाखों को देनी पड़ रही है अपनी जान।


सर्वप्रथम तो अपनी सरकार ही रही ऐसे

संभावित खतरे को भांपने में बुरी तरह नाकाम,

जाकर विदेशों से जहाज भर-भरकर ले आई

खुद अपने लिए मौत का सामान।


आने वाले लोगों की जांच और रुकने का

एयरपोर्ट पर ही अगर किया जाता इंतजाम

तो काफी हद तक हो सकती थी आसान

इस ख़तरनाक संक्रामक वायरस की रोकथाम।


बिगड़े जब हालात तो लगा दिया

बिना तैयारी के आनन-फानन में ही लॉकडाउन

जिसके चलते जमकर मची अफरातफरी

और सैकड़ों लोगों को गंवानी पड़ी अपनी जान।


अंतरराष्ट्रीय और अंतरराज्यीय सीमाओं को

बंद करके चलने देते उद्योग धंधे व बाकी काम

तो ना जाती लोगों की नौकरियां इतनी और

ना ही अर्थव्यवस्था को पहुंचता इतना नुक्सान।


जनता ने भी लापरवाही के मामले में इस दौरान

स्थापित किए नित नये आयाम

जुटते रहे धार्मिक-राजनीतिक कार्यक्रमों में खूब

लगाकर सबकी जिंदगी को दांव।


रोक के बावजूद करते रहे लोग बढ़-चढ़कर

शादी समारोह, पार्टियां और धाम

जिनमें होता नहीं था भूल से भी कभी

सैनेटाईजेशन,मास्क व सोशल डिस्टेंसिंग का नाम।


सरकार और जनता दोनों आरोपों-प्रत्यारोपों के

इस खेल में इक-दूजे पर मढ़ रही हैं इल्जाम

और कुल मिलाकर कर रहे हैं दोनों मिलकर

महामारी की आग में आहुति डालने का काम।

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