मानव की प्रवृत्ति

नहीं है संभव

कि हर कोई खुश रहे, 

हमसे

हमेशा हमेशा के लिए

क्योंकि 

प्रवृत्ति मानव की

हमेशा खुश रहने की

है ही नहीं।


नहीं है संभव

कि हर कोई सहमत हो जाए

हमसे

हमेशा हमारे विचारों से

क्योंकि 

प्रकृति मानव की

एक ही तरह से सोचने की

है ही नहीं।


नहीं है संभव

कि हर कोई साथ चल पाए

हमारे

हमेशा हमेशा के लिए,

क्योंकि 

मंजिल मानव की

एक ही जगह पहुंचने की

है ही नहीं।


Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

"जिस्म़"(कविता)

"बेटियाँ"(कविता)

"उसकी मुस्कान" (कविता)

"बुलबुला"(कविता)

"वो रात" (कविता)