"बॉस हमेशा सही नहीं होता"(कविता)
यह हो सकता है
कि वो प्रमुख हो
अपने कार्यालय का
केवल मात्र उम्र में
वरिष्ठता के कारण
या फिर
किसी क्षेत्र विशेष के
अच्छे ज्ञान और
प्रर्दशन के कारण,
लेकिन अपने पद के
घमण्ड में जब वो
हर मुद्दे पर पेलता है
अपना निर्णायक ज्ञान,
खुद को बताता है
हर बात में सबसे बेहतर
और करता है उम्मीद
कि सब मान लें वेदवाक्य
उसकी कही हर बात को,
चापलूसी ना करना जब
बन जाए उसके लिए
किसी को नाजायज
तंग करने का आधार,
तो धीरे-धीरे बन जाता है
वो अपने
अधीनस्थ कर्मचारियों की
आंखों की किरकिरी,
उसकी तथाकथित इज्जत का
दिखावा चलता है
सिर्फ उसके सामने दिख जाने
और ज्यादा से ज्यादा
उसके पदासीन रहने तक।
Written by जितेन्द्र 'कबीर'
kya bat hai... achha charitra chitaran kiye ho jitendara ji...
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