छवि के गुलाम
लोगों के बीच बन जाए
जो एक बार छवि,
कई लोग फिर उसको
ताउम्र ढोते हैं,
ऐसे लोग असल में अपनी ही
छवि के गुलाम होते हैं।
लोग क्या कहेंगे यह सोचकर
अपने अरमानों को
कांटों में हर बार पिरोते हैं,
असल में बड़े ही मजबूर
यह छवि के गुलाम होते हैं।
मानते हों किसी काम को
चाहे गलत मन ही मन
लेकिन सामने हर बार उसके
समर्थन में होते हैं,
अंदर से बड़े ही लाचार
यह छवि के गुलाम होते हैं।
अपनी सोच को ही हमेशा
सबसे उत्कृष्ट बता
दूसरों को नीचा दिखाने में
बड़े होशियार होते हैं,
अंदर से बड़े ही बीमार
यह छवि के गुलाम होते हैं।
Written by जितेन्द्र 'कबीर'
nice.....
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