"राजनीति के रंग"(कविता)

राजनीति झूठी और बेईमान हो गई

उस दिन से ही

जनता ने स्वीकार कर लिया

जिस दिन से 

झूठे - बेईमान लोगों को

राजनीति का एक अपरिहार्य अंग,

इस मानसिकता से निकलती नहीं

जनता जब तक

राजनीति में झूठ और बेईमानी के 

दिखते रहेंगे नये-नये रंग।


राजनीति भ्रष्ट और लुटेरी हो गई

उस दिन से ही

जनता ने स्वीकार कर लिया

जिस दिन से

भ्रष्ट - लुटेरे लोगों को

राजनीति का एक अपरिहार्य अंग,

ऐसे लोगों की सफाई करती नहीं

जनता जब तक

स्वच्छ राजनीति में भ्रष्ट और लुटेरे

लोग लगाते रहेंगे जंग।


राजनीति हत्यारी और अपराधी हो गई

उस दिन से ही

जनता ने स्वीकार कर लिया

जिस दिन से

हत्यारे - अपराधी लोगों को

राजनीति का एक अपरिहार्य अंग,

ऐसे लोगों की ठुकाई करती नहीं

जनता जब तक

शांति और कानून व्यवस्था को

ऐसे लोग करते रहेंगे भंग।


राजनीति धर्म और जाति आधारित हो गई

उस दिन से ही

जनता ने स्वीकार कर लिया

जिस दिन से

धर्म-जाति के नाम पर वैमनस्य फैलाकर

वोट बटोरने वाले लोगों को

राजनीति का एक अपरिहार्य अंग,

ऐसी बीमारियों की दवाई करती नहीं

जनता जब तक

हर बार चुनावी राजनीति को

ऐसे लोग करते रहेंगे बदरंग।

Comments

  1. वर्तमान का जमीनी हकीकत।

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  2. जी धन्यवाद आपका

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