"हम नहीं मानने को तैयार"(कविता)

 अपने देश के लोग इस आपदा को

अब तक नहीं हैं मानने को तैयार,

डर रहा है केवल मात्र वही इंसान

भुगत रहा है जो अभी इसकी मार।


कुछ लोगों की नजर में बीमारी नहीं

है बस कुछेक शातिरों का दुष्प्रचार,

इसलिए सुरक्षात्मक कोई भी उपाय

अपनाने से वो करते हैं साफ इन्कार।


बहुत लोगों की नजर में है बीमारी

मामूली सर्दी-जुकाम और बुखार,

ठीक तो हो रहे हैं इसमें भी लोग

हल्ला मचाया जा रहा है यहां बेकार।


कइयों ने छोड़ रखा है ईश्वर पर ही

अपनी जान की रक्षा का सारा भार,

मौत आ भी जाएगी इस तरह उन्हें तो

वो कर लेंगे प्रसाद समझकर स्वीकार।


आयुर्वेदिक जीवन पद्धति का शुरू में

कुछ लोगों ने किया था जमकर प्रचार,

लेकिन स्थिति की भयावहता देखकर

बदलने लगे हैं उनके भी अब विचार।


हममें से बहुत सारे लोग हैं ऐसे जिनकी

कमाई का है नहीं कोई पक्का आधार,

पेट भरने की मजबूरी में ही ऐसे लोग

काम पर निकलने के लिए हैं लाचार।


राजनीति से जुड़े महानुभावों का इनमें

है सबसे अलग ही जोशीला व्यवहार,

जनता मरे या फिर भाड़ में जाए कहीं

इन्हें केवल करना है सत्ता का व्यापार।


महामारी फैलने पर सबके अपने तर्क

और हैं सबके अलग-अलग विचार,

परिस्थितियां बिगड़ती ही जाएंगी अगर

ना किया हमने बचाव का रुख अख्तियार।


रेत के टीले में अपना सिर छिपाकर जैसे

शुतुरमुर्ग बच नहीं पाता बनने से शिकार,

हमारा भी होगा हश्र वैसा अगर हमनें अब

किया नहीं कोविड के अनुरूप व्यवहार।

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