"विडंबना"(कविता)


राष्ट्र सेवा का झंडा 

बुलंद करके चलने वाले

ज्यादातर लोग,

अपनी सेवा 

राष्ट्र से करवाने के

मंसूबे दिल में लिए हैं,

इन्हीं मंसूबों की खातिर

ना जाने कितने जोड़ तोड़

उन लोगों ने किए हैं।


राष्ट्र रक्षा का झंडा

बुलंद करके चलने वाले

ज्यादातर लोग,

अपनी रक्षा 

जेड प्लस सिक्योरिटी से

करवाने के मंसूबे

दिल में लिए हैं,

इन्हीं मंसूबों की खातिर

ना जाने कितने विवादास्पद

बयान उन लोगों ने दिए हैं।


राष्ट्र उत्थान का झंडा

बुलंद करके चलने वाले

ज्यादातर लोग,

अपना निजी उत्थान

राष्ट्र की कीमत पर

कर लेने के मंसूबे

दिल में लिए हैं,

इन्हीं मंसूबों की खातिर

ना जाने कितने घर-परिवार

बर्बाद उन लोगों ने किए हैं।

Comments

  1. राष्ट्र रक्षा का झंडा

    बुलंद करके चलने वाले

    ज्यादातर लोग,
    nice line...

    ReplyDelete
  2. जी धन्यवाद आपका

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

"जिस्म़"(कविता)

"बेटियाँ"(कविता)

"उसकी मुस्कान" (कविता)

"बुलबुला"(कविता)

"वो रात" (कविता)