"मंजर जुदा सा हैं"(कविता)
पलको में आंसुओं का समंदर क्यों है
सीने में सुलगता धुँआ सा क्यों है
इस शहर का मंजर जुदा सा है
ये खामोशी , इतना सन्नाटा सा क्यों है
रूह कांप रही इंसानों की भी
अस्पतालों में लाशों का बवंडर सा क्यों है
इस महामारी में सांसों को तरस रहा आदमी
फिर हर साँस पे , ये सौदा सा क्यों है
लाशें कतार में है श्मशान में जलने को
ये दावानल आतिशरा सा क्यों है
Written by कमल राठौर साहिल
superb.... nice......
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